बांग्लादेश में हसीना की जीत के मायने.....

शेख हसीना की अवामी लीग संसदीय चुनावों में 300 में से 288 सीटों पर विजयी रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हसीना को फोन पर बधाई दी। उम्मीद है, वहां भारत-हित पर और अधिक ध्यान दिया जाएगा


 


   


       बांग्लादेश में संसदीय चुनावों पर भारत के रुख को लेकर किसी विश्लेषक को कोई संशय नहीं था। बांग्लादेश के 2014 के चुनाव की बात करें तो तब दुनिया के कई देशों ने विरोध किया था पर भारत ने उसका पुरजोर समर्थन किया था। उस चुनाव को सफल बनाने के लिए मतदान के ठीक पहले तत्कालीन भारतीय विदेश सचिव सुजाता सिंह की ढाका यात्रा भी हुई थी। 30 दिसंबर, 2018 को सम्पन्न हुए बांग्लादेश के 11वें संसदीय चुनावों में मुख्य टक्कर शेख हसीना बांग्लादेश अवामी लीग और खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के बीच थी।

    बांग्लादेश के चुनाव और परिणाम पर भारत की विशेष निगाह थी। बेगम खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) का रुख सदैव भारत से टकराव और कट्टरपंथी इस्लाम के पक्ष में रहा है। पिछली बार भी खालिदा जिया की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी द्वारा चुनावों का बहिष्कार करने से शेख हसीना की बांग्लादेश अवामी लीग को सत्ता मिली थी। इस बार भी इन्हीं दोनों पार्टियों के बीच मुकाबला था। लेकिन इस बार बीएनपी की नेता खालिदा जिया भ्रष्टाचार के मामलों में ढाका जेल में बंद थीं। उनके स्थान पर बीएनपी के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने कमान संभाली हुई थी। 

 

      गौरतलब है कि शेख हसीना की पार्टी को भारत के प्रति सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि रखने वाली माना जाता है।

बांग्लादेश की संसद में कुल 350 सदस्य हैं, जिनमें 300 सदस्य मतदान के जरिए चुने जाते हैं, जबकि महिलाओं के लिए आरक्षित 50 सीटें साझे वोट के आधार पर बांटी जाती हैं। वहीं सरकार बनाने के लिए किसी भी राजनीतिक दल या मोर्चे को 151 सीटें जीतने की जरूरत होती है। संसदीय चुनाव हर पांच साल में होते हैं।

बांग्लादेश में पिछले कुछ वर्षों के दौरान दिखी राजनीतिक उठापटक का नतीजा यह रहा है कि देश असली मुद्दों से भटकता हुआ नजर आया। यहां कट्टरपंथ का उभार देखने को मिला। हिन्दू धर्मस्थलों को तोड़ा गया, अनेक ब्लॉगर्स और सेकुलर बुद्धिजीवियों को निशाना बनाया गया, कइयों की हत्या हुई। ऐसे तत्वों को राजनीतिक शह भी मिली थी। जाकिर नाईक से प्रभावित कई इस्लामिक संगठनों ने हिंदुओं के विरुद्ध हिंसा को अपना हथियार बना लिया था। बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरपंथ पर लगाम लगाना मुख्य चुनौती रही है। इसका मुकाबला हसीना सरकार ने अच्छी तरह किया है। अर्थव्यवस्था भी बेहतर हुई है। वॉर क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने उन लोगों को सजा दी है, जिन्होंने 1971 में अत्याचार किए थे। बांग्लादेश में मुख्य विपक्षी पार्टी, जमाते इस्लामी के चुनाव लड़ने पर रोक है। तकरीबन दो माह पहले जमाते-इस्लामी का पंजीकरण रद्द किया जा चुका है। लिहाजा इसके प्रत्याशी बीएनपी के साथ निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ रहे थे।

बांग्लादेश में स्थिरता आवश्यक

बांग्लादेश और भारत 4,000 किमी लंबी सीमा साझा करते हैं। रणनीतिक रूप से भारत के लिए यह पड़ोसी देश बड़ा ही महत्वपूर्ण है। भारत की लुक ईस्ट नीति का यह देश एक प्रमुख घटक है। शेख हसीना के शासन में नई दिल्ली ने द्विपक्षीय संबंधों में सुधार देखा है। सीमा विवादों का सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटारा करने की कोशिश की गई है। दोनों के बीच मजबूत सुरक्षा सहयोग स्थापित किया गया है। तीस्ता नदी जल बंटवारे को लेकर मतभेदों को निपटाने में प्रगति हुई है। बांग्लादेश में भारत का निवेश भी बढ़ा है। भारत अपनी तटस्थता की नीति पर कायम रहते हुए वहां के राजनीतिक हालात पर नजर बनाए हुए था। भारत, बांग्लादेश के चुनावों पर कोई प्रतिक्रिया इसलिए नहीं दे रहा था, क्योंकि ये चुनावी मुद्दा बन सकता था।

 

भारत के सामरिक सहयोगी

पारंपरिक रूप से नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और श्रीलंका भारत के निकटतम पड़ोसी हैं, जिनमें से किसी एक का भी कमजोर होना भारत के लिए सामरिक रूप से अहितकर होता है। इसी साल नेपाल और मालदीव में भी चुनाव हुए हैं। इन दोनों देशों में भी भारत की तरफ से कोई बहुत सक्रिय भागीदारी नहीं दिखाई गई। नेपाल, मालदीव और श्रीलंका में चीन के बढ़ते प्रभाव के चलते वहां की सरकारों के कई निर्णय भारत के हित के विरुद्ध रहे। यह भारतीय कूटनीति की जीत ही है कि श्रीलंका और मालदीव में प्रजातांत्रिक प्रक्रिया से भारत विरोधी सरकारों का पतन हुआ।

मालदीव भारत के लिए रणनीतिक रूप से काफी अहम है। अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल में चीन से वहां निवेश हुए हैं। मालदीव में चीन की बढ़ती रुचि भारत और अमेरिका के लिए खतरे की घंटी की तरह रही। मालदीव में दो बातें एक साथ हुईं। एक तरफ चीन की मौजूदगी बढ़ी तो दूसरी तरफ चीन के निवेश के साथ भ्रष्टाचार से लोकतांत्रिक ढांचे भी कमजोर हुए। विशेषज्ञों का मत है कि चीन ने श्रीलंका में महिंदा राजपक्षे के रहते जो किया वही काम यामीन के कार्यकाल में मालदीव में किया। चीन के समर्थक यामीन के कथित दबाव पर मालदीव की कंपनियों ने अपने विज्ञापन में उल्लेख कर दिया कि भारतीय नागरिक नौकरी के लिए आवेदन न करें, क्योंकि उन्हें वीसा नहीं दिया जाएगा। लेकिन अंतत: हाल ही में मालदीव में संपन्न चुनावों में इब्राहीम मोहम्मद सोलिह के चुनाव जीतने से एक भारत-मित्र ने वहां गद्दी संभाली है। चीन के नए हिमायती बने नेपाल में भारत की स्थिति अभी उतनी सुदृढ़ नहीं हुई है जितनी होनी चाहिए।

भारत-बांग्लादेश संबंध

1971 में पाकिस्तान से अलग होने के बाद, पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश के रूप में पहचान मिली। दरअसल आरंभिक बांग्लादेश की स्थापना लोकतांत्रिक देश के रूप में हुई थी, लेकिन बीच में यह देश सैन्य शासन का गवाह भी बना। 1975 में शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या और सत्ता के तख्तापलट के बाद 15 साल तक यहां सैन्य शासन रहा था, उसके बाद 1990 में एक बार फिर इस देश में लोकतंत्र का उदय हुआ। बांग्लादेश में 5.16 करोड़ महिलाओं सहित लगभग साढ़े दस करोड़ मतदाता हैं। वहीं इस बार 40 राजनीतिक पार्टियां चुनाव में हिस्सा ले रही थीं। इन चुनावों में कुल 1848 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमाने के लिए उतरे।

बहरहाल, शेख हसीना की अवामी लीग ने 300 में से 288 सीटों पर जीत दर्ज की है। यह अभूतपूर्व सफलता है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने शेख हसीना को फोन पर बधाई दी है। शेख हसीना के इस दूसरे शासनकाल में भारत-बांग्लादेश मैत्री और दृढ़ होगी, ऐसा माना जा रहा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)